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विश्वास रख...
माना कि, पन्नों के, टुकड़ों सी हूँ अभी !
मगर, ए मुसाफिर ,
वक़्त दे मुझे ;
पन्ने बनकर भी, दिखाऊँगी तुझे !
तेरी दास्तां को बयां करने वाली ,
सुनहरी किताब बनकर भी, दिखाऊँगी तुझे ।
तू, बस सफर पर अपने विश्वास रख ;
खुदपर, और मुझ में विश्वास रख !
बदल कर, दिखाऊँगी तुझे ।
बदल कर, दिखाऊँगी तुझे ।।
© FreelancerPoet
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